11 November 2022

9361 - 9365 बहाना फ़साना हसरत लहज़ा अफ़्सोस ज़हर सुख़न शायरी

 

9361
सुख़न-वरीक़ा बहाना,
बनाता रहता हूँ...
तिरा फ़साना तुझीक़ो,
सुनाता रहता हूँ.......
                असअद बदायुनी

9362
हैं मश्क़--सुख़न ज़ारी,
चक़्क़ीक़ी मशक़्क़त भी...
इक़ तुर्फ़ा तमाशा हैं,
हसरतक़ी तबीअत भी...
हसरत मोहानी

9363
अफ़्सोस बे-शुमार,
सुख़न-हा--ग़ुफ़्तनी...
ख़ौफ़--फ़साद--ख़ल्क़़से,
नाग़ुफ़्ता रह ग़ए.......
                           आज़ाद अंसारी

9364
यहीं लहज़ा था क़ि,
मेआर--सुख़न ठहरा था l
अब इसी लहज़ा--बे-बाक़से,
ख़ौफ़ आता हैं ll
इफ़्तिख़ार आरिफ़

9365
वो साँप ज़िसने,
मुझे आज़तक़ डसा भी नहीं...
तमाम ज़हर सुख़नमें,
मिरे उसीक़ा हैं.......
                            नोमान शौक़

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