1 November 2022

9316 - 9320 दुश्मन प्यार महफ़िल तन्हा बातें मुस्तक़िल सुख़न शायरी

 

9316
दुश्मनसे और होतीं बहुत,
बातें प्यारक़ी...
शुक़्र--ख़ुदा ये हैं क़ि,
वो बुत क़म-सुख़न हुआ.......
                           निज़ाम रामपुरी

9317
गो क़म-सुख़न हैं,
भरी महफ़िलोंमें तन्हा हैं,
वो अपने आपसे मिलता हैं,
बात क़रता हैं...ll


9318
बोलते रहते हैं,
नुक़ूश उसक़े...
फ़िर भी वो शख़्स,
क़म-सुख़न हैं बहुत.......
              नुसरत ग्वालियारी

9319
हर आदमी नहीं,
शाइस्ता--रुमूज़--सुख़न ;
वो क़म-सुख़न हो,
मुख़ातब तो हम-क़लाम क़रें ll

9320
क़्या ऐसे क़म-सुख़नसे,
क़ोई ग़ुफ़्तुगू क़रे...?
ज़ो मुस्तक़िल सुक़ूतसे,
दिलक़ो लहू क़रे.......
                     अहमद फ़राज़

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