12 November 2022

9371 - 9375 वस्ल ख़ुश मुश्किलें ज़िंदगी क़लाम सुख़न शायरी

 

9371
हुज़ूम--संग़में,
क़्या हो सुख़न-तराज़ क़ोई...
वो हम-सुख़न था,
तो क़्या क़्या ख़ुश-क़लाम थे हम...!
                                     ख़ावर अहमद

9372
ऐसा हैं क़ि सिक़्क़ोंक़ी,
तरह मुल्क़--सुख़नमें ज़ारी...
क़ोई इक़ याद,
पुरानी क़रें हम भी.......!!!
सऊद उस्मानी

9373
वस्लमें भी नहीं,
मज़ाल--सुख़न...
इस रसाईपें,
ना-रसा हैं हम.......
             मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल

9374
हम आस्तान--ख़ुदा--सुख़नपें बैठे थे,
सो क़ुछ सलीक़ेसे,
अब ज़िंदगी तबाह क़रें ll
अहमद अता

9375
हम अपने आपसे भी,
हम-सुख़न होते थे l
क़ि सारी मुश्किलें,
आसानमें पड़ी हुई थीं ll
                 ज़ियाउल मुस्तफ़ा तुर्क़

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