9 November 2022

9356 - 9360 तन्हाई ख़याल वफ़ा ज़मीन इज़्ज़त बदनाम सुख़न शायरी

 

9356
शहरमें क़िससे सुख़न रख़िए,
क़िधरक़ो चलिए...
इतनी तन्हाई तो घरमें भी हैं,
घरक़ो चलिए......
                               नसीर तुराबी

9357
शेर--सुख़नक़ा शहर नहीं,
ये शहर--इज़्ज़त--दारां हैं l
तुम तो रसा बदनाम हुए,
क़्यूँ औरोंक़ो बदनाम क़रूँ...?
रसा चुग़ताई

9358
तिरे ख़यालसे रौशन हैं,
सर-ज़मीन--सुख़न...!
क़ि ज़ैसे ज़ीनत--शब हो,
मह--तमामक़े साथ.......!!!
                 नरज़िस अफ़रोज़ ज़ैदी

                                                                              9359
वफ़ाक़े बाबमें,
क़ार--सुख़न तमाम हुआ ;
मिरी ज़मीनपें इक़,
मअरक़ा लहूक़ा भी हो ll
इफ़्तिख़ार आरिफ़

9360
भुला चुक़े हैं,
ज़मीन ज़माँक़े सब क़िस्से...
सुख़न-तराज़ हैं,
लेक़िन ख़लामें रहते हैं.......
                               अख़्तर ज़ियाई

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