4871
जमानेके साथ,
जिंदगी चलानी पडी;
इंसानियत
तो थी,
मगर छुपानी पडी...
4872
गम मेरे साथ
साथ,
बहुत दूरतक गए ।
मुझमे थकन
न पाई तो,
बेचारे थक गए ।।
कृष्णबिहारी
नूर
4873
कितना भी ज्ञानियोंके साथ बैठ
लो...
तजुर्बा तो, बेवक़ूफ़ बननेके
बाद ही मिलता हैं...
4874
कैसे ढूंढके
लाऊँ,
वापिस उन
खूबसूरत पलोंको...
ज़िन्दगी
अब साँसे नहीं,
उसका साथ माँग
रही हैं...!
4875
चलनेकी कोशिश
तो करो,
दिशायें
बहुत हैं।
रास्तोपे बिखरे
काँटोंसे न
डरो,
तुम्हारे
साथ दुआएँ बहुत हैं।।