13 October 2019

4871 - 4875 जमाने तजुर्बा बेवक़ूफ़ गम साँसे पल काँटें दुआ जिंदगी साथ शायरी


4871
जमानेके साथ,
जिंदगी चलानी पडी;
इंसानियत तो थी,
मगर छुपानी पडी...

4872
गम मेरे साथ साथ,
बहुत दूरतक गए ।
मुझमे थकन पाई तो,
बेचारे थक गए 
कृष्णबिहारी नूर

4873
कितना भी ज्ञानियोंके साथ बैठ लो...
तजुर्बा तो, बेवक़ूफ़ बननेके बाद ही मिलता हैं...

4874
कैसे ढूंढके लाऊँ,
वापिस उन खूबसूरत पलोंको...
ज़िन्दगी अब साँसे नहीं,
उसका साथ माँग रही हैं...!

4875
चलनेकी कोशिश तो करो,
दिशायें बहुत हैं।
रास्तोपे बिखरे काँटोंसे डरो,
तुम्हारे साथ दुआएँ बहुत हैं।।

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