22 October 2019

4911 - 4915 हासिल अज़ाब ख़्वाब पलक तकदीर मकसद अंजाम मोहताज जिंदगी शायरी


4911
कहाँ-कहाँसे इकट्ठा करूँ,
ज़िंदगी तुझको...
जिधर भी देखूँ,
तू ही तू बिखरी पड़ी हैं.......!

4912
"अच्छी ज़िन्दगी जीनेके दो तरीके हैं...
जो पसंद है उसे हासिल करना सीख लो,
या फिर जो हासिल हुआ हैं...
उसे पसंद करना सीख लो...!"

4913
इसी सबबसे हैं शायद,
अज़ाब जितने हैं...
झटकके फेंक दो,
पलकोंपे ख़्वाब जितने हैं...!
(अज़ाब = दुःख, संकट, विपत्ति)

4914
तकदीरें बदल जाती हैं,
जब ज़िन्दगीका कोई मकसद हो;
वरना ज़िन्दगी तो कट ही जाती हैं,
तकदीरको अंजाम देते देते.......

4915
हो सके तो सबको,
माफ करके सोया करों...
जिन्दगी कलकी,
मोहताज नहीं होती...!

No comments:

Post a Comment