14 October 2019

4876 - 4880 मोहब्बत क़त्ल निगाह हथियार अदालत ख्वाहिश याद काफ़िर ग़म कोशिश शायरी


4876
मेरा क़त्लकी कोशिश तो,
उनकी निगाहोंने की थी;
पर अदालतने उन्हें,
हथियार माननेसे इनकार कर दिया...!

4877
कोशिश बहुत कि,
ऱाज--मोहब्बत बयाँ ना हो...
पर मुमकिन कहाँ था कि,
आग लगे और धुआँ ना हो...!

4878
ख्वाहिश तो थी मिलनेकी,
पर कभी कोशिश नही की...
सोचा कि जब खुदा माना हैं,
उसको तो बिन देखे ही पूजेंगे...!

4879
के कोशिश ही क्युँ करते हैं,
आप हमें भूल जानेकी...
बस यादोंको कहो कि,
काफ़िर हो जाये.......

4880
तुझे पानेकी कोशिशमें,
कुछ इतना खो चुका हूँ मैं...
कि तू मिल भी अगर जाए तो,
अब मिलनेका ग़म होगा.......

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