31 October 2019

4956 - 4960 महबूब कसर रिश्ते काबिल वाकिफ़ तकलीफ़ जिगर तारीफ शायरी


4956
तारीफ इतनी ही काफी है,
की वो मेरे महबूब है...
क्या ख़ास है उसमे,
ऐसा मैने कभी सोचा ही नही...!

4957
तारीफ नहीं करते हम खुद की,
मगर ये सच है की;
कोई कसर नहीं छोडते,
रिश्ते निभाने में.......

4958
काबिल--तारीफ होने के लिये...
वाकिफ़--तकलीफ़ होना पड़ता है...!

4959
तारीफ किसी की करने के लिए,
जिगर चाहिए...
बुराई तो बिना हुनर के,
किसीकी भी कर सकते हैं...

4960
निंदा उसी की होती है,
जो जिंदा है...
मरनेके बाद तो सिर्फ,
तारीफ होती है.......!

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