10 October 2019

4856 - 4860 ज़िन्दगी जीवन कोशिश समझ वजह उलझन बात साँसे रिश्ते जन्नत वक्त साथ शायरी


4856
तुमने भी तो कोशिश नहीं की,
मुझे समझनेकी...
वरना वजह कोई नहीं थी,
तेरे और मेरे उलझनेकी...

4857
नींद आती थी जिसे,
तेरे साथ बात करके...
सोच, वो सो कैसे सकेगा,
तेरे रूठ जानेके बाद...

4858
कोई ढूंढ लाओ उसको,
वापस मेरी ज़िन्दगीमें...
ज़िन्दगी अब साँसे नहीं,
उसका साथ मांग रही हैं...!

4859
अपनोकी इनायत कभी खतम हीं होती,
रिश्तोंकी महेक भी कभी कम हीं होती...
जीवनमें साथ हो गर किसी सच्चे रिश्तेका,
तो ये ज़िन्दगी किसी जन्नतसे कम हीं लगती...


4860
वक्त वक्तका फेर हैं,
वक्त वक्तकी बात हैं...
पिछले सावन वो साथ थी,
इस सावन उसकी याद हैं...!

No comments:

Post a Comment