3 October 2019

4821 - 4825 जिन्दगी इज़हार इकरार मोहब्बतें शिकायत उम्र किताब दामन गुरूर दौर शायरी


4821
इज़हारसे इकरारके दरमियानही,
लुत्फ़ देती हैं मोहब्बतें...
बाद कुबुलियतके शिकवो शिकायतोंका,
दौर हुआ करता हैं.......

4822
चंद पन्ने क्या फटे,
ज़िन्दगीकी किताबके साहिब...
कुछ लोगोंने समझा,
हमारा दौर ही ख़त्म हो गया.......

4823
चाहे जिधरसे गुज़रिये,
मीठीसी हलचल मचा दिजिये;
उम्रका हर एक दौर मज़ेदार हैं,
अपनी उम्रका मज़ा लिजिये...!

4824
"मंज़र" धुंधला हो सकता हैं, 
"मंज़िल" नहीं...
"दौर" बुरा हो सकता हैं,
"ज़िंदगी" नहीं.......!

4825
साफ़ दामनका दौर तो,
कबका खत्म हुआ साहब...
अब तो लोग अपने धब्बोंपर,
गुरूर करने लगे हैं.......

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