4881
ज़िन्दगी
ये तेरी,
खरोंचे हैं मुझपर...
या फिर तू
मुझे तराशनेकी,
कोशिशमें हैं.......!
4882
निगाहोंमें मंज़िल थी,
गिरे और गिरकर संभलते रहे।
हवाओंने तो
बहुत कोशिश की,
मगर चिराग आँधियोंमें
भी जलते रहे।।
4883
कोशिश न कर,
तू सभीको
ख़ुश रखनेकी...
नाराज तो यहाँ कुछ लोग,
खुदासे भी
हैं.......
4884
ख्वाहिश
ये बेशक नहीं
की,
हर कोई "तारीफ" करे...
मगर कोशिश ये जरूर हैं की,
कोई
"बुरा" ना कहे.......!
4885
कोशिश इतनी हैं,
कोई रूठे ना
हमसे...
नजरअंदाज करने वालोसे,
नजर हम भी
नही मिलाते.......!
No comments:
Post a Comment