4856
तुमने भी तो
कोशिश नहीं की,
मुझे समझनेकी...
वरना वजह कोई
नहीं थी,
तेरे
और मेरे उलझनेकी...
4857
नींद आती थी
जिसे,
तेरे साथ
बात करके...
सोच, वो सो
कैसे सकेगा,
तेरे
रूठ जानेके
बाद...
4858
कोई ढूंढ लाओ
उसको,
वापस मेरी
ज़िन्दगीमें...
ज़िन्दगी
अब साँसे नहीं,
उसका साथ मांग
रही हैं...!
4859
अपनोकी इनायत कभी खतम
नहीं होती,
रिश्तोंकी
महेक भी कभी
कम नहीं होती...
जीवनमें
साथ हो गर
किसी सच्चे रिश्तेका,
तो ये ज़िन्दगी
किसी जन्नतसे कम
नहीं लगती...
4860
वक्त वक्तका
फेर हैं,
वक्त वक्तकी
बात हैं...
पिछले सावन वो
साथ थी,
इस सावन उसकी
याद हैं...!