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5 January 2021

6996 - 7000 ज़माना ख़ुशी मसर्रत अरमान ख़ुशी ग़म शायरी

 

6996
सुनते हैं ख़ुशीभी हैं,
ज़मानेमें कोई चीज़...
हम ढूँडते फिरते हैं,
किधर हैं ये कहाँ हैं...

6997
ख़ुशियाँ छुपी हैं,
छोटी-छोटी अरमानोंमें...
पता नही क्यों ढूढ़ते हैं,
इसे महंगी दुकानोंमें.......

6998
ना ख़ुशी खरीद पाता हूँ,
ना ही गम बेच पाता हूँ;
फिर भी ना जाने मैं क्यूँ,
हर रोज कमाने जाता हूँ...

6999
ख़ुशी नहीं,
ग़म चाहते हैं,
ख़ुशी उन्हें दें दें...
जिन्हें हम चाहते हैं...!

7000
अगर तेरी ख़ुशी हैं,
तेरे बंदोंकी मसर्रतमें...
तो मेरे ख़ुदा,
तेरी ख़ुशीसे कुछ नहीं होता...!