7631
न बसमें ज़िन्दगी इसक़े,
न क़ाबू मौतपर इसक़ा...
मगर इन्सान फिरभी क़ब,
ख़ुदा होने से ड़रता हैं.......
राज़ैश रेड्डी
7632मर्ग मांदगीक़ा,इक़ वक़्फा हैं...यानी आगे बढ़ेगे,दम लेक़र.......!मीरतक़ी मीर
7633
मुझे हर ख़ाक़क़े ज़र्रेपर,
यह लिक़्खा नज़र आया;
मुसाफ़िर हूँ अदमक़ा और,
फना हैं क़ारवाँ मेरा...
असर लख़नवी
7634माँक़ी आग़ोशमें क़लमौतक़ी आग़ोशमें आज़हमक़ो दुनियामें ये दो वक़्तसुहानेसे मिलेक़ैफ़ भोपाली
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क़ौन ज़ीनेक़े लिए,
मरता रहे...
लो सँभालो अपनी दुनिया,
हम चले.......
अख़्तर सईद ख़ान