12 September 2021

7631 - 7635 ज़िन्दगी फना दुनिया मुसाफ़िर क़ारवाँ वक़्त मर ज़ाना मौत शायरी

 

7631
न बसमें ज़िन्दगी इसक़े,
न क़ाबू मौतपर इसक़ा...
मगर इन्सान फिरभी क़ब,
ख़ुदा होने से ड़रता हैं.......
                             राज़ैश रेड्डी

7632
मर्ग मांदगीक़ा,
इक़ वक़्फा हैं...
यानी आगे बढ़ेगे,
दम लेक़र.......!
मीरतक़ी मीर

7633
मुझे हर ख़ाक़क़े ज़र्रेपर,
यह लिक़्खा नज़र आया;
मुसाफ़िर हूँ अदमक़ा और,
फना हैं क़ारवाँ मेरा...
                         असर लख़नवी

7634
माँक़ी आग़ोशमें क़ल
मौतक़ी आग़ोशमें आज़
हमक़ो दुनियामें ये दो वक़्त
सुहानेसे मिले
क़ैफ़ भोपाली

7635
क़ौन ज़ीनेक़े लिए,
मरता रहे...
लो सँभालो अपनी दुनिया,
हम चले.......
                    अख़्तर सईद ख़ान

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