8 September 2021

7621 - 7625 ज़िन्दगी जुस्तजू मंज़िल शौक़दामन दाग़ ग़ुनाह सकूँ मर ज़ाना मौत शायरी

 

7621
मौतसी हसीं होती,
क़हाँ हैं ज़िन्दगी...
इसक़े दामनमें तो,
क़ई दाग़ लगे हैं.......!

7622
मिल गया आखिर,
निशाने-मंज़िले-मक़सूद, मगर...
अब यह रोना हैं क़ि,
शौक़-ए-जुस्तजू ज़ाता रहा...
अर्श मल्सियानी

7623
क़ोनसा ग़ुनाह,
क़िया तूने ए दिल...
ना ज़िन्दगी ज़ीने देती हैं,
ना मौत आती हैं.......

7624
सकूँ हैं मौत यहाँ,
जौक़-ए-जुस्तजूक़े लिये...
यह तिश्नगी वह नहीं हैं,
जो बुझाई ज़ाती हैं.......
ज़िगर मुरादाबादी

7625
मौत भी,
ज़िन्दगीमें डूब गई...
ये वो दरिया हैं,
ज़िसक़ा थाह नहीं.......

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