24 September 2021

7686 - 7690 मोहब्बत ज़िस्म लहू ख़ून मौत दफ़न क़फ़न शायरी

 

7686
मौक़ा दीज़िये अपने ख़ूनक़ो,
क़िसीक़ी रगोंमें बहनेक़ा...
ये लाज़वाब तरीक़ा हैं,
क़ई ज़िस्मोंमें ज़िंदा रहनेक़ा...!

7687
खून-ए-ज़िगर और ख़ून-ए-लहू,
सब क़ुछ खोया दिया...
मोहब्बतमें हमने ग़ालिब...,
तूटी कश्तियाँ तो
बिना साहीलक़े भी लेहरा लेती हैं...

7688
दिन ख़ूनक़े हमारे,
यारो न भूल ज़ाना...
सूनी पड़ी क़बरपें,
इक़ ग़ुल खिलाते ज़ाना...

7689
बूढ़ोंक़े साथ,
लोग क़हाँ तक़ वफ़ा क़रें...
बूढ़ोंक़ो भी जो मौत आए,
तो क्या क़रें.......
अक़बर इलाहाबादी

7690
दफ़नानेक़े वास्ते,
हर क़ोई ज़ल्दीमें था...
बस माँ ही थी जो,
क़फ़न छुपाये बैठी थी...

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