7686
मौक़ा दीज़िये अपने ख़ूनक़ो,
क़िसीक़ी रगोंमें बहनेक़ा...
ये लाज़वाब तरीक़ा हैं,
क़ई ज़िस्मोंमें ज़िंदा रहनेक़ा...!
7687खून-ए-ज़िगर और ख़ून-ए-लहू,सब क़ुछ खोया दिया...मोहब्बतमें हमने ग़ालिब...,तूटी कश्तियाँ तोबिना साहीलक़े भी लेहरा लेती हैं...
7688
दिन ख़ूनक़े हमारे,
यारो न भूल ज़ाना...
सूनी पड़ी क़बरपें,
इक़ ग़ुल खिलाते ज़ाना...
7689बूढ़ोंक़े साथ,लोग क़हाँ तक़ वफ़ा क़रें...बूढ़ोंक़ो भी जो मौत न आए,तो क्या क़रें.......अक़बर इलाहाबादी
7690
दफ़नानेक़े वास्ते,
हर क़ोई ज़ल्दीमें था...
बस माँ ही थी जो,
क़फ़न छुपाये बैठी थी...
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