29 September 2021

7701 - 7705 साँस नजर याद ज़िक्र इज़हार इश्क़ महक़ खुशबु उम्र वज़ूद शायरी

 

7701
तेरी यादसे ही,
महक़ ज़ाता हैं वज़ूद मेरा...!
यक़ीनन ये फक़त इश्क़ नहीं,
क़ोई ज़ादू हैं तेरा.......!!!

7702
उनसे इज़हार--मुद्दआ क़िया,
क़्या क़िया मैंने,
हाए क़्या क़िया ll
अनीसा हारून शिरवानिया

7703
तेरे वज़ूदक़ी खुशबु,
बसी हैं साँसोंमें...
ये और बात हैं,
नजरोंसे दूर रहते हो...

7704
तेरे इश्क़से मिली हैं,
मेरे वज़ूदक़ो ये शोहरत...
मेरा ज़िक्र ही क़हाँ था,
तेरी दास्ताँसे पहले.......?

7705
तमाम-उम्र भटक़ता रहा,
मैं तेरे लिए...
तिरा वज़ूद ही हस्तीक़ा,
मुद्दआ निक़ला.......
                       शक़ील आज़मी

No comments:

Post a Comment