5 September 2021

7611 - 7615 ज़िन्दगी वक़्त हिज्र आवाज़ हौसला ज़िंदा शबाब मर ज़ाना मौत शायरी

 

7611
क़्या गिला क़रना,
अपनोंसे यहाँ...
मौत आज़ाये तो ज़िन्दगीभी,
मुह मोड़ लेती हैं.......

7612
ऐ हिज्र,
वक़्त टल नहीं सक़ता मौतक़ा...
लेक़िन ये देख़ना हैं क़ि,
मिट्टी क़हाँ क़ी हैं.......
नाज़िम अली ख़ान

7613
पज़मुर्दा होक़े,
फूल गिरा शाख़से तो क्या...
वह मौत हैं हसीन,
जो आये शबाबमें........!
                        असर लख़नवी

7614
बे-मौत मर ज़ाते हैं,
बे-आवाज़ रोने वाले...

7615
ज़िंदा रहनेक़ा,
हक़ मिलेग़ा उसे...
ज़िसमें मरनेक़ा,
हौसला होग़ा...
           सरफ़राज़ अबद

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