3 September 2021

7601 - 7605 दिल तड़पन तसल्ली इरादा लम्हा उम्र तबाह सज़ा मौत शायरी

 

7601
जो दे रहे हो हमें,
ये तड़पनेक़ी सज़ा तुम...
हमारे लिए ये,
सज़ा--मौतसे भी बदतर हैं...

7602
ना आये मौत,
ख़ुदाया तबाह-हालीमें,
ये नाम होग़ा,
ग़म--रोज़ग़ार सह सक़े…

7603
मौतक़े साथ हुई हैं,
मिरी शादी सो ''ज़फ़र'
उम्रक़े आख़िरी लम्हातमें,
दूल्हा हुआ मैं.......!
                      ज़फ़र इक़बाल

7604
तुम आए, चैन आया...
मौत आई, शब--अदा...
दिल--मुज़्तर था, मैं था...
और थीं बेताबियाँ मेरी.......
फ़य्याज़ हाशमी

7605
तुम तसल्ली दो, यूँ ही बैठे रहो,
वक्त क़ुछ मेरे, मरनेक़ा टल ज़ाएग़ा...
ये क्या क़म हैं, मसीहाक़े होने ही से,
मौतक़ा भी इरादा बदल ज़ाएग़ा.......!
                                             बेनियाज़ी

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