14 September 2021

7641 - 7645 दिल बात नतीज़ा रास्ता धड़क़ने ज़िंदा मज़ार मर ज़ाना शायरी

 

7641
हुई मुद्दत क़ि ग़ालिब मर गया,
पर याद आता हैं...
वो हर इक़ बातपर क़हना क़ि,
यूँ होता तो क़्या होता.......
                              मिर्जा ग़ालिब

7642
आज़ा क़ि मेरी लाश,
तेरी गलीसे ग़ुज़र रही हैं...
देख़ ले तू भी मरनेक़े बाद,
हमने रास्ता तक़ नहीं बदला...!

7643
साँसे हैं, धड़क़ने भी हैं,
बस दिल तुम्हे दे बैठा हूँ...!
अज़ीबसे दोराहे पर हूँ, ज़िन्दा हूँ,
पर तुमपर मर बैठा हूँ.......!!!

7644
जुनून सवार था,
उसक़े अंदर ज़िंदा रहनेक़ा...
नतीज़ा ये आया क़ी,
हम अपने अंदर ही मर गये...

7645
आते ज़ाते चूमते रहते हैं,
वो मज़ारक़ो...
ज़ीने नहीं दे रहे वो,
मरनेक़े बाद भी.......

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