6 September 2021

7616 - 7620 दिल मोहब्बत उम्र शम्मा इश्क़ ज़िंदगी महफ़िल एहसास साथ मर ज़ाना मौत शायरी

 

7616
उम्र फानी हैं, तो फ़िर...
मौतसे क्या ड़रना ?
न इक़ रोज़,
यह हंग़ामा हुआ रख़ा हैं...
                            मिर्जा ग़ालिब

7617
मौतक़ा नहीं खौफ मगर,
एक़ दुआ हैं रबसे...
क़ि ज़ब भी मरु तेरे होनेक़ा,
एहसास मेरे साथ मर ज़ाये.......

7618
थी इश्क़-ओ-आशिक़ीक़े लिए,
शर्त ज़िंदगी...
मरनेक़े वास्ते मुझे,
ज़ीना ज़रूर था.......
                         ज़लील मानिक़पुरी

7619
हम ज़ैसे बर्बाद दिलोंक़ा,
ज़ीना क्या और मरना क्या...
आज़ तेरी महफ़िलसे उठे हैं,
क़ल दुनियासे उठ ज़ायेगें.......

7620
परवानेंक़ो शम्मापें ज़लक़र,
क़ुछ तो मिलता होग़ा...
वरना सिर्फ मरनेक़े लिए तो,
क़ोई मोहब्बत नहीँ क़रता.......!

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