8 September 2021

7626 - 7630 दर्द ज़िन्दगी मज़बूर शोख़ नज़र मर ज़ाना मौत शायरी

 

7626
दर्दक़ी बिसात हैं,
मैं तो बस प्यादा हूँ...
एक़ तरफ ज़िन्दगीक़ो शय हैं,
एक़ तरफ मौतक़ो भी मात हैं।

7627
सूँघक़र क़ोई मसल डाले तो,
ये हैं ग़ुलक़ी ज़ीस्त.......
मौत उसक़े वास्ते,
डाली क़ुम्हलानेमें हैं.......!
आनन्द नारायण मुल्ला

7628
ज़िंदगी हैं अपने क़ब्ज़ेमें,
न अपने बसमें मौत...
आदमी मज़बूर हैं और,
क़िस क़दर मज़बूर हैं.......
                     अहमद आमेठवी

7629
हम थे मरनेक़ो ख़ड़े,
पास न आया न सही...
आख़िर उस शोख़क़े तरक़शमें,
क़ोई तीर भी था.......!
मिर्जा ग़ालिब

7630
देख़ इतना क़ि,
नज़र लग ही ज़ाये मुझे,
अच्छा होग़ा,
तेरी नज़रसे मर ज़ाना...!

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