26 September 2021

7691 - 7695 रूह ख़याल मर्ज़ी फ़िक़्र इंक़ार आईना क़हानी वज़ूद शायरी

 
7691
तेरी मर्ज़ीसे ढ़ल ज़ाऊं,
हर बार ये मुमक़िन नहीं...
मेरा भी वज़ूद हैं,
मैं क़ोई आईना नहीं.......

7692
मैं तो क़ुछ भी नहीं, तेरे बिन...
तू तो सार हैं, मेरी क़हानीक़ा l
तेरा वज़ूद समंदरसे भी बड़ा हैं,
मैं बस क़तरा हूँ पानीक़ा...ll

7693
मिरा वज़ूद,
मिरी रूहक़ो पुक़ारता हैं l
तिरी तरफ़ भी चलूँ तो,
ठहर ठहर जाऊँ.......ll
             अहमद नदीम क़ासमी

7694
हम एक़ फ़िक़्रक़े पैक़र हैं,
इक़ ख़यालक़े फूल...
तिरा वज़ूद नहीं हैं,
तो मेरा साया नहीं.......
फ़ारिग़ बुख़ारी

7695
तिरा वज़ूद ग़वाही हैं,
मेरे होनेक़ी...
मैं अपनी ज़ातसे,
इंक़ार क़िस तरह क़रता...
                     फ़रहत शहज़ाद

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