Showing posts with label दर सहारे बंदगी गजल सुबूत आँसू कीमत वसूल शायरी. Show all posts
Showing posts with label दर सहारे बंदगी गजल सुबूत आँसू कीमत वसूल शायरी. Show all posts

12 May 2017

1308 दिल आह दास्तां अर्ज जुर्म बयाँ दर्ज मुजरिम हुस्न सूली गुनाह कुबूल इश्क शायरी


1308
अपने हर आहकी दास्तां अर्ज किया हैं हमने l
अपने हर जुर्मका बयाँ दर्ज किया हैं हमने ll

मुजरिम हुआ ऐ हुस्न, सूलीपें लटका दो मुझे l
गुनाह कुबूल हैं मुझे, तुमसे इश्क किया हैं हमने ll

मेरे गजल सुबूत हैं, देख लो ऐ दिलके मालिक l
अपने हर आँसूकी कीमत वसूल किया हैं हमने ll

तेरे दरपें मुझे कुछ न मिलेगा, ये जानकर भी l
इस दिलके सहारे तेरी बंदगी किया हैं हमने ll