12 May 2017

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अपने हर आह की दास्तां अर्ज किया है हमने l
अपने हर जुर्म का बयां दर्ज किया है हमने ll

मुजरिम हुआ ऐ हुस्न, सूली पे लटका दो मुझे l
गुनाह कुबूल है मुझे, तुमसे इश्क किया है हमने ll

मेरे गजल सुबूत हैं, देख लो ऐ दिल के मालिक l
अपने हर आंसू की कीमत वसूल किया है हमने ll

तेरे दर पे मुझे कुछ न मिलेगा, ये जानकर भी l

इस दिल के सहारे तेरी बंदगी किया है हमने ll

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