30 May 2017

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साँचे में अजल के हर घडी़ ढलती है।
हर वक़्त यह शमए-ज़िन्दगी जलती है॥
आती-जाती है साँस अन्दर-बाहर।

या उम्र के हलक़ पर छुरी चलती है॥

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