30 May 2017

1365 ज़िन्दगी साँचे अज़ल घडी़ वक़्त शाम साँस उम्र हलक़ शायरी


1365
साँचेमें अज़लक़े हर घडी़ ढलती हैं।
हर वक़्त यह शाम-ए-ज़िन्दगी ज़लती हैं॥
आती-ज़ाती हैं साँस अन्दर-बाहर।
या उम्रक़े हलक़पर छुरी चलती हैं॥

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