30 May 2017

1363 ज़िंदगी रफ़्ता वक़्त साँचे पेंच शायरी


1363
वक़्तके साँचेमें ढलकर
हम लचीले हो गए...
रफ़्ता-रफ़्ता ज़िंदगीके
पेंच ढीले हो गए !

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