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4 April 2021

7361 - 7365 दिल गीला याद ज़हेन बात आँसु नफ़रत नाराज़ नाराज़गी शायरी

 

7361
यूँ तो हम,
रो तुम्हें याद रते हैं...!
दौर नाराज़गीक़ा ख़त्म हो,
फ़िर बात रते हैं.......!!!

7362
शिक़ायतें रनी छोड़ दी हैं मैने उससे...
ज़िसे फ़र्क़ मेरे आँसुओंसे नहीं पड़ता;
मेरे नाराज़गीसे क़्या होगा.......?

7363
निक़ा दिए गए क़ु दिलोंसे,
उन्हें हमसे गीला भी नहीं...
और  हम हैं के बसे,
ज़हेनमें नाराज़गी लिए बैठे हैं...

7364
ज़बसे तुमने रुठेको,
मनाना छोड़ा दिया...
तबसे हमने ख़ुदासे भी,
नाराज़ होना छोड़ दिया...

7365
नाराज़गी जायज़ हैं तुमसे,
मगर नफ़रत मुमक़ि नहीं...!