7361
यूँ तो हम,
रोज़ तुम्हें याद क़रते हैं...!
दौर नाराज़गीक़ा ख़त्म हो,
फ़िर बात क़रते हैं.......!!!
7362शिक़ायतें क़रनी छोड़ दी हैं मैने उससे...ज़िसे फ़र्क़ मेरे आँसुओंसे नहीं पड़ता;मेरे नाराज़गीसे क़्या होगा.......?
7363
निक़ाल दिए गए क़ुछ दिलोंसे,
उन्हें हमसे गीला भी नहीं...
और एक़ हम हैं के क़बसे,
ज़हेनमें नाराज़गी लिए बैठे हैं...
7364ज़बसे तुमने रुठेको,मनाना छोड़ा दिया...तबसे हमने ख़ुदासे भी,नाराज़ होना छोड़ दिया...
7365
नाराज़गी जायज़ हैं तुमसे,
मगर नफ़रत मुमक़िन नहीं...!
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