2 April 2021

7351 - 7355 मोहब्बत प्यार हुस्न इश्क़ नख़रे ज़ान समझ ख़ुशी नफ़रत नाराज़ नाराज़गी शायरी

 

7351
नख़रे तेरे, नाराज़गी तेरी,
देख़ लेना.......
एक दिन ज़ान ले लेगी मेरी...!

7352
हुस्न यूँ इश्क़से,
नाराज़ हैं अब...
फूल ख़ुश्बूसे,
ख़फ़ा हो जैसे.......!
इफ़्तिख़ार आज़मी

7353
क़ु नाराज़गी सिर्फ़,
ग़ले लगनेसे ही दूर होती हैं...
समझने समझानेसे नहीं.......!

7354
नाराज़गी हो तो,
मोहब्बत हैं बे-मज़ा...
हस्ती ख़ुशी भी, ग़म भी हैं,
नफ़रत भी, प्यार भी.......!
ज़ामी रुदौलवी

7355
ख़ामोशियाँ ही बेहतर हैं,
शब्दोंसे लोग़.......
नाराज़ बहुत हुआ करते हैं...!

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