19 April 2021

7436 - 7440 दिल प्यार इश्क़ मोहब्बत ख़ूबसूरती साज़िश चिराग़ ख़िलाफ ग़म बेवज़ह शायरी

 

7436
ख़ूबसूरती, दिल और
ज़मीरमें होनी चाहिए...
लोग़ बेवज़ह उसे शक़्ल,
और क़पड़ोंमें टटोलते हैं...

7437
बेवज़ह हैं,
तभी तो दोस्ती हैं !
वज़ह होती तो,
साज़िश होती...!!!

7438
मैं तो चिराग़ हूँ,
मेरी लड़ाई तो सिर्फ अँधेरेसे हैं l
ये हवा तो बेवज़ह हीं,
मेरे ख़िलाफ हो ज़ाती हैं...ll

7439
बेवज़ह नहीं रोता,
इश्क़में क़ोई ग़ालिब...
ज़िसे ख़ुदसे बढ़कर चाहो,
वो रूलाता ज़रूर हैं.......

7440
बेवज़ह अब ज़िंदगीमें,
प्यारक़े बीज़ ना बोये क़ोई...
मोहब्बतक़े पेड़ हमेशा,
ग़मक़ी बारिश ही लाते हैं.......

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