7401
ज़मानेक़ा मुख़ालिफ़ हो ज़ाना,
तो लाज़मी था;
बात क़ोई आम नहीं,
मसअला इश्क़क़ा था...!
7402ज़मानेक़ी परवाह, वो क़िया करते हैं...ज़ो ख़ुदसे भी डरा करते हैं;वो नहीं ज़ो अपनी, आँखोंमें तुझे और...अपने दिलमें ख़ुदाक़ो लिए फिरते हैं...!
7403
आज मौसम भी कमबख्त,
ख़ुशमिज़ाज हैं...
क्या करे अब हमारा,
यारा थोड़ा नाराज हैं.......
7404एक ज़माना हो गया,तेरे साथ वक़्त गुज़ारे हुए...न ज़ाने अब कब,वो लम्हा आएगा...जिस लम्हेंमें मुझे,तेरा साथ नसीब होगा...तू तो मसरूफ़ हैं,अपनी ज़िंदगीमें...पर सोच मेरा यहाँ तेरे बिना,क़्या हाल होगा.......
7405
हमींपें ख़त्म हैं,
ज़ौर-ओ-सितम ज़मानेके...
हमारे बाद उसे,
क़िसक़ी आरज़ू होगी...
फ़सीह अकमल
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