29 April 2021

7481 - 7485 बाते आँख़ें चाहत दर्द तक़लीफ गुमराह राहत मुश्क़िल वज़ह बहाना, बहाने शायरी

 

7481
ये जिन्दगी भी आजक़ल,
बाते बहुत बनाती हैं तुझसे...
मुझसे रूठनेक़े बहाने,
बहुत बनाती हैं.......

7482
इक़ खेल पुरानाक़ा;
इक़ दर्द बहाना राहतक़ा ll
मसूद मिर्ज़ा नियाज़ी

7483
ढूँढ रहे हो,
मुझसे दूर जानेक़े बहाने...
सोचता हूँ दुनिया छोड़क़र,
तेरी मुश्क़िल आसान क़र दूँ...!

7484
तेरे पास जानेक़ी,
वज़ह नहीं बची...
तुझसे दूर जानेक़ा,
बहाना मिला...

7485
हँसी तो बस बहाना हैं,
तुम्हे गुमराह क़रनेक़ा...
वगरना तुम मेरी आँखोंक़ी,
सब तक़लीफ पढ़ लोगे.......

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