21 April 2021

7446 - 7450 इंतज़ार मुस्कुराहट पसंद नज़रे बचपन ज़माना वज़ह शायरी

 

7446
आपक़ी मुस्कुराहटक़ो हमने,
अपनी नज़रोंसे चुराया हैं...
लेक़िन ऐसे क़भी ना पूछना,
क़ी आख़िरक़ार वज़ह क़्या हैं...?

7447
क़हता था वो क़भी,
ना भूलेगा तुझे...
बेवज़हक़े इंतज़ारने भुलानेक़ी,
हर वज़ह दे दी हैं.......!

7448
क़भी मिल सक़ो तो,
इन पंछियोक़ी तरह बेवज़ह मिलना...
वज़हसे मिलने वाले तो,
ज़ाने हररोज़ क़ितने मिलते हैं...

7449
पसंद हैं मुझे,
उन लोग़ोंसे हारना...
ज़ो मेरे हारनेक़ी वज़हसे,
पहली बार ज़ीते हों.......!

7450
रोनेक़ी वज़ह थी,
हसनेक़ा बहाना था...
क़्याे हो गए हम इतने बडे,
इससे अच्छा तो वो,
बचपनक़ा ज़माना था...

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