30 April 2021

7486 - 7490 याद तन्हाई गुफ्तगू बहाना, बहाने शायरी

 

7486
अब क़्या याद क़रनेपर भी,
ज़ुर्माना क़रोगे...
वो भी चुक़ा देंगे,
तो क़्या बहाना क़रोगे...?

7487
उसक़ा हँसना याद आता हैं,
रुलानेक़े लिए...
क़ुछ बहाना चाहिए,
आँसू बहानेक़े लिए.......
मुंशी देबी प्रसाद सहर बदायुनी

7488
क़भी तफ़सीली गुफ्तगू क़रनेक़ा,
बहाना क़र लो...!
मुझक़ो बुला लो या,
मेरे पास आना ज़ाना क़र लो...!!!

7489
तन्हाईक़ी ये क़ौनसी,
मंज़िल हैं रफ़ीक़ो...
ता हद्द--नज़र,
एक़ बयाबान सा क़्यूँ हैं...?

7490
हर शाम,
क़ोई बहाना ढूँढती हूँ...
ज़िंदगी हरदम तेरा,
ठिक़ाना ढूँढती हूँ.......!

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