1 May 2021

7491 - 7495 दिल धड़क़न ख़्वाब ज़िन्दगी चिराग लफ़्ज़ हसरत रौशनी नज़र मंज़िल बहाना, बहाने शायरी

 

7491
क़भी चिरागोंक़ें बहानें,
मिल जाया क़रती थी हसरतोंक़ो मंज़िलें...
आज़ रौशनी हैं गज़ब मगर,
साया ही नज़र नहीं आता क़ोई.......

7492
इक़ लफ़्ज़-ए-मोहब्बतक़े,
बने लाख़ फ़साने...
तोहमतक़े बहाने,
क़भी शोहरतक़े बहाने.......
महेंद्र प्रताप चाँद

7493
बहाने क़्याें ढूँढता हैं वो,
मुझसे दूर ज़ानेक़ा...
साफ़ क़हता नहीं क़ि,
अब मन नहीं हैं बात क़रनेक़ा...

7494
लौटी हैं दिलमें धड़क़न,
ख़्वाबोंमें उनक़े आनेसे...!
ज़िन्दगी क़ुछ दूर तलक़,
चलेगी इसी बहानेसे.......!!!

7495
ज़रासी ग़लतीपें रूठ बैठे...
क़्या उसे बस बहाना चाहिए था...?

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