7561
ज़हरक़े असरदार होनेसे,
क़ुछ नहीं होता साहब...
ख़ुदा भी राज़ी होना चाहिये,
मौत देनेक़े लिये.......
7562क़ौन क़हता हैं क़ि,मौत आई तो मर ज़ाऊँगी...मैं तो नदी हूँ,समुंदरमें उतर ज़ाऊँगी.......
7563
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म,
अस्लमें दोनों एक़ हैं...
मौतसे पहले आदमी,
ग़मसे नज़ात पाए क्यूँ.......
मिर्ज़ा ग़ालिब
7564सुलग़ती जिंदगीसे,मौत आ ज़ाये तो बेहतर हैं lहमसे दिलक़े अरमानोंक़ा,अब मातम नहीं होता...ll
मौत ज़िस्मक़ी रिवायत हैं,
रूहक़ो बस लिबास बदलना हैं...!
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