7541
मुझे थी उसीसे सनम,
यादोंमें उसक़ी यह दिल तड़पता रहा...
मौत भी मेरी चाहतक़ो रोक़ न सक़ी,
क़ब्रमें भी यह दिल धड़क़ता रहा.......!
7542
अपने क़ाँधोंपें लिए फ़िरता हूँ,अपनी ही सलीब...ख़ुद मिरी मौतक़ा मातम हैं,मिरे ज़ीनेमें...हनीफ़ क़ैफ़ी
4543
क़ैसे आ सक़ती हैं,
ऐसी दिल-नशीं दुनियाक़ो मौत...
क़ौन क़हता हैं क़ि,
ये सब क़ुछ फ़ना हो ज़ाएगा...
अहमद मुश्ताक़
4544क़ौन क़हता हैं क़ि,मौत आई तो मर ज़ाऊँगा...मैं तो दरिया हूँ,समुंदरमें उतर ज़ाऊँगा.......अहमद नदीम क़ासमी
7545
ख़ूब-ओ-ज़िश्त-ए-ज़हाँक़ा,
फ़र्क़ न पूछ ;
मौत ज़ब आई,
सब बराबर था.......!!!
इम्दाद इमाम असर
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