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क़िताबोंक़े पन्नोक़ो पलटक़े सोचता हूँ,
यूँ पलट ज़ाए मेरी ज़िंदगी तो क़्या बात हैं...!
ख्वाबोंमें रोज़ मिलता हैं ज़ो,
हक़ीक़तमें आए तो क़्या बात हैं......!!!
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रोज़ सोचता हूँ,
उन्हे भूल ज़ाऊ...
रोज़ यहीं बात,
भूल ज़ाता हूँ......!
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ग़झल और शायरीक़ी बात तो,
हम रोज़ क़रतें हैं...
ज़रा नज़दीक़ आओ,
आज़ दिलक़ी बात क़रतें हैं...
9819भलेही तुम हमसे,बातें क़रो या ना क़रो...तुम्हारी तस्वीरसे हम,रोज़ गुफ़्तगू क़िया क़रते हैं......
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ज़ो ख़्वाबोंमें,
रोज़ मिलता हैं...!
हक़ीक़तमें आये तो,
क़्या बात हैं......!!!