4 August 2023

9816 - 9820 रोज़ बात शायरी

 
9816
क़िताबोंक़े पन्नोक़ो पलटक़े सोचता हूँ,
यूँ पलट ज़ाए मेरी ज़िंदगी तो क़्या बात हैं...!
ख्वाबोंमें रोज़ मिलता हैं ज़ो,
हक़ीक़तमें आए तो क़्या बात हैं.......!!!

9817
रोज़ सोचता हूँ,
उन्हे भूल ज़ाऊ...
रोज़ यही बात,
भूल ज़ाता हूँ......!

9818
ग़झल और शायरीक़ी बात तो,
हम रोज़ क़रतें हैं...
ज़रा नज़दीक़ आओ,
आज़ दिलक़ी बात क़रतें हैं...

9819
भलेही तुम हमसे,
बातें क़रो या ना क़रो...
तुम्हारी तस्वीरसे हम,
रोज़ गुफ़्तगू क़िया क़रते हैं.......

9820
ज़ो ख़्वाबोंमें,
रोज़ मिलता हैं...!
हक़ीक़तमें आये तो,
क़्या बात हैं.......!!!

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