16 August 2023

9876 - 9880 मुलाक़ात क़ायनात ज़िन्दग़ी बात शायरी

 

9876
नज़र ही नज़रमें,
मुलाक़ात क़र ली...
रहे दोनों ख़ामोश,
और बात क़र ली...!

9877
तयशुदा मुलाक़ातोंमें,
वो बात नहीं बनती...
क़्या ख़ूब था राहोंमें,
अचानक़ सामनेसे आना तेरा...!!!

9878
क़ुछ तो सोचा होग़ा,
क़ायनात ने तेरेमेरे रिश्तेपर...
वरना इतनी बड़ी दुनियामें,
तुझसे हीं बात क़्यों होती.......!

9879
ज़लवे तो बेपनाह थे,
इस क़ायनातमें...
ये बात और हैं क़ि,
नज़र तुमपर हीं ठहर ग़ई...

9880
ख़िलख़िलाती ज़िन्दग़ी होनी चाहिए,
बातोमें रूहानी होनी चाहिए,
सारी दुनिया अपनी हो ज़ाती हैं...
बस यारक़ी मेहरबानी होनी चाहिए ll

No comments:

Post a Comment