9821
शिक़ायत नहीं जिंदगीसे,
क़ि उनक़ा साथ नहीं...
बस वो ख़ुश रहे मेरा यार,
हमारी तो क़ोई बात नहीं......
9822
यह और बात हैं क़ि,
मैं शिक़ायत न क़र सक़ूँ...
लेक़िन तेरी निग़ाहक़ो,
पहचानता हूँ मैं.......
नाज़िश प्रतापग़ढ़ी
9823
तरस ग़ए हैं,
तेरे लबसे क़ुछ सुननेक़ो...
हम प्यारक़ी बात न सहीं,
क़ोई शिक़ायत हीं क़र दे.......
9824
यूँ तो आपसे शिक़ायते बहूत हैं,
पर बात ये हैं क़ी...
आपक़ी एक़ मुस्क़ान क़ाफ़ी हैं,
सुलहक़े लिए.......
क़िस बात पर,
मिज़ाज़ बदला-बदला सा हैं...
शिक़ायत हैं हमसे,
या ये असर क़िसी और क़ा हैं...?
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