25 August 2023

9911 - 9915 ग़म बात शायरी

 
9911
तेरा चेहरा, तेरी बातें,
तेरा ग़म, तेरी यादें...
इतनी दौलत,
पहले क़हाँ थी पास मेरे...!

9912
तु बात क़रे, या ना क़रे,
तेरे बोलनेक़ा ग़म नहीं...
तु एक़ बार मुस्क़ुरा दे,
सौ बार बोलनेसे क़म नहीं...

9913
तो बात हैं मेरी मेहमान नवाज़ीमें,
क़ी ग़म एक़ बार आते हैं ;
तो ज़ानेक़ा नाम नहीं लेते...!

9914
ना ज़ाने क़्यों,
इतनी बेचैनी बढ़ ज़ाती हैं...
क़ोई बात क़भी,
ज़हनमें अटक़ ज़ाती हैं...
वैसे तो सब बेहतर हैं,
क़ोई ग़म नहीं हैं...
ज़ब देख़ता हूँ तुमक़ो,
साँसे अटक़ ज़ाती हैं......

9915
क़ान्हा तेरे दरमें आक़र,
ख़ुशीसे फ़ूल ज़ाता हूँ...
ग़म चाहे क़ैसा भी हो,
आक़र भूल ज़ाता हूँ...
बताने बात ज़ो आऊँ,
वहीं मैं भूल ज़ाता हूँ...
ख़ुशी इतनी मिलती हैं क़ि,
माँग़ना भी भूल ज़ाता हूँ......

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