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7 February 2020

5441 - 5445 दिल बहला क़ाम जरूरी जरूरत मजबूरी मुस्क़ुरा कामयाब तडप पसंद काँच कच्चे रिश्ते शायरी


5441
कल तक मैं जरूरत था,
आज जरूरी भी नहीं...
कल तक मैं एक रिश्ता था,
आज मजबूरी भी नहीं...

5442
मैने पुछा उनसे क़ी,
क़्या रिश्ता हैं तेरा-मेरा, ?
उन्होंने मुस्क़ुराक़े क़हा क़ी,
तुम तो दिल बहलानेक़े क़ाम आते हो...

5443
दोनों तरफ़से निभाया जाये,
वही रिश्ता कामयाब होता हैं साहिब...
एक तरफ़से सेंक कर तो,
रोटी भी नहीं बनती.......

5444
मुझे तेरे ये कच्चे रिश्ते,
जरा भी पसंद नही आते...
या तो लोहेकी तरह जोड़ दे,
या फिर धागेकी तरह तोड़ दे...!

5445
टूटे तो बड़े चुभते हैं.......
क्या काँच, क्या रिश्ते...!