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मख्मूर अपने दिलमें तकब्बुर न लाइए,
दुनियामें हर उरूजका एक दिन जवाल हैं l
मचलता होगा इन्हीं गालोंपर शबाब कभी,
उबलती होगी इन्हीं आँखोसे शराब कभी l
मगर अब इनमें वह पहली-सी कोई बात नहीं,
जहाँमें आह किसी चीजकी सबात नहीं ll
अख्तर शीरानी
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कोई दिन आगे
भी,
ज़ाहिद अजब ज़माना
था...
हर इक मोहल्लेकी
मस्जिद,
शराब-ख़ाना था.......!
क़ाएम चाँदपुरी
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भरा हैं शीशा-ए-दिलको,
नई मोहब्बतसे...
ख़ुदाका घर था जहाँ,
वहाँ शराब-ख़ाना हुआ...!
हैदर अली आतिश
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दुख़्त-ए-रज़
और,
तू कहाँ मिलती;
खींच लाए,
शराब-ख़ानेसे...!
शरफ़ मुजद्दिदी
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मय-कशीमें रखते हैं हम,
मशरब-ए-दुर्द-ए-शराब...
जाम-ए-मय चलता जहाँ,
देखा वहाँपर जम गए.......!