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9 November 2017

1931 - 1935 दिल मोहब्ब्त याद आवाज़ ख़बर निगाहें अजीब शख्स जुबां खंजर नाम बर्बाद तलाश दिये लकीर हथेली शायरी


1931
काश दिलकी आवाज़में,
इतना असर हो जाए...
हम याद करें उनको,
और उन्हें ख़बर हो जाए !

1932
मोहब्ब्तमें हुए बर्बाद शायरोंमें,
मेरा नाम आया,
उन्होंने दिया हुआ दर्द,
देख़े मेरे क़ितना क़ाम आया l

1933
मेरे कत्लके लिए तो,
मीठी जुबां ही काफी थी़...
अजीब शख्स था वो जो,
खंजर तलाशता रहा़...

1934
तुमने भी हमें बस,
एक दियेकी तरह समझा था,
रात गहरी हुई तो जला दिया...
सुबह हुई तो बुझा दिया.......!

1935
उसने देखा ही नहीं,
अपनी हथेलीको कभी...
उसमें हलकीसी लकीर,
मेरी भी थी...