1931
काश दिलकी आवाज़में,
इतना असर हो जाए...
हम याद करें उनको,
और उन्हें ख़बर हो जाए !
1932
काँटोंका तो नाम ही बदनाम हैं...
चुभती तो निगाहें भी हैं...
1933
मेरे कत्लके लिए तो,
मीठी जुबां ही काफी थी़...
अजीब शख्स था वो जो,
खंजर तलाशता रहा़...
1934
तुमने भी हमें बस,
एक दियेकी तरह समझा था,
रात गहरी हुई तो जला दिया...
सुबह हुई तो बुझा दिया.......!
1935
उसने देखा ही नहीं,
अपनी हथेलीको कभी...
उसमें हलकीसी लकीर,
मेरी भी थी...
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