26 November 2017

2006 - 2010 दिल जिदंगी इज़ाज़त तक़दीर मंजिल बेहतर लकीर शिकवा इबादत आदत शायरी


2006
इज़ाज़त हो तो माँग लूँ तुम्हे,
सुना हैं तक़दीर लिखी जा रही हैं !

2007
तू बिन बताये मुझे ले चल कहीं,
जहाँ तू मुस्कुराये मेरी मंजिल वहीं !

2008
खुद ही दे जाओगे तो बेहतर हैं,
वरना हम दिल चुरा भी लेते हैं !

2009
हाथोंकी लकीरोंमें तुम हो ना हो,
जिदंगीभर दिलमें जरूर रहोगे !

2010
शिकवा करने गये थे,
और इबादतसी हो गई...!
तुझे भुलानेकी जिद थी,
मगर तेरी आदतसी हो गई...!

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